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गनी और अब्दुल्ला में समझौता, अफगान राजनीति में नया दौर

आखिर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और उनके धुर विरोधी अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच राजनीतिक समझौता हो ही गया। दोनों अलग-अलग अफगानिस्तान में अपनी अपनी सरकार के दावे कर रहे थे और दोनों के बीच फरवरी माह से ही जबरदस्त टकराव चल रहे थे। मालूम हो कि अफगानिस्तान में एक लंबी अवधि की चुनाव प्रक्रिया चली जिसमें अशरफ गनी को फरवरी 2030 में राष्ट्रपति पद के लिए विजयी घोषित किया गया था, लेकिन अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने इस फैसले को मानने से इंकार कर दिया और दोनों अपने अपने ढंग से एक ही दिन राष्ट्रपति पद की शपथ लेकर सरकार चलाने का दावा कर रहे थे। अफगानिस्तान के टोलोन्यूज के अनुसार दोनों में 17 मई को समझौता हो गया और इस पर सहमति के हस्ताक्षर दोनों ने कर भी दिए।
नए समझौते के अनुसार संभवत अब्दुल्ला अब्दुल्ला नेशनल रिकॉन्सिलिएशन काउंसिल के प्रमुख होंगे और अफगानिस्तान की कैबिनेट में कम से कम 50 प्रतिशत उनके समर्थक शामिल होंगे। समझौते में एक और प्रमुख बदलाव यह हुआ कि पूर्व उपराष्ट्रपति अब्दुल रशीद दोस्तम को मार्शल के पद पर बिठाया गया।
अफगानी संसद जिरगा के तमाम सदस्य भी इन दोनों नेताओं के बीच टकराव को टालने के लिए लगातार प्रयासरत थे । अफगानिस्तान की जनता भी इन दोनों नेताओं में जल्द से जल्द सुलह चाहती थी , क्योंकि एक तरफ तालिबान लगातार हमले कर रहा है तो दूसरी तरफ कोरोना वायरस से भी अफगानिस्तान बुरी तरह से प्रभावित है और दोनों में टकराव के कारण अफगानिस्तान की व्यवस्था चरमरा रही थी।
इस बीच अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान ने भी अपनी पूर्व की स्थिति में बदलाव कर लिया है। पाकिस्तान के लाख दावे के बावजूद तालिबान अफगानिस्तान में लगातार हमले कर रहे हैं ।अफगानिस्तान के राष्ट्रपति गनी खुलेआम इसके लिए पाकिस्तान को दोषी ठहरा रहे हैं। विगत कुछ दिनों से जिस तरह के बयान पाकिस्तान की तरफ से आ रहे हैं उससे यही लगता है कि अफगान शांति वार्ता फेल होने का जोखिम पाकिस्तान अपने ऊपर नहीं लेना चाहता ।अमेरिका के विशेष दूत जलमे खलीलजदा पिछले दिनों पाकिस्तान के दौरे के बाद काफी निराश नजर आए । अब वह भी अफगानिस्तान पीस वार्ता में पाकिस्तान के बराबर भारत की भी भूमिका देख रहे हैं । इसलिए उनका दौरा इस्लामाबाद के साथ साथ दिल्ली का भी हुआ ।
अमेरिका में तैनात पाकिस्तान के राजदूत असद खान ने हाल ही में प्रेस को दिए अपने एक साक्षात्कार में कहा भी है कि यदि भारत मानता है कि वह अफगानिस्तान में शांति के लिए तालिबान से बातचीत ज्यादा अच्छे तरीके से कर सकता है तो उसे करना चाहिए । असद खान ने खुलकर कहा यदि भारत तालिबान से बात करना उचित समझता है तो इस्लामाबाद को इससे कोई दिक्कत नहीं है। अभी तक पाकिस्तान भारत को वार्ता में शामिल होने का विरोध करता रहा है । पिछली मास्को बैठक में भारतीय प्रतिनिधि को बुलाए जाने को लेकर पाकिस्तान ने आपत्ति भी जताई थी । लेकिन अब चूंकि तालिबान समझौते के विपरीत अफगानिस्तान पर लगातार हमले कर रहे हैं , यहां तक कि काबुल में महिलाओं के प्रसव के अस्पताल पर उसने हमला किया और गर्भवती महिलाओं को मार डाला। इससे  तालिबान और पाकिस्तान की थू थू हो रही है। पाकिस्तान जानता है कि तालिबान की तरफ से जो भी आश्वासन अमेरिका को देगा, वह फेल ही होगा ।
हालांकि तालिबान ने अभी तक अमेरिकी सैनिकों पर कोई हमला नहीं किया है , लेकिन तालिबान शांति प्रस्ताव में शामिल शर्तों का खुला खुला उल्लंघन कर रहा है। देखना यह है अफगानिस्तान में इस नई राजनीतिक जुगलबंदी कितनी कारगर सिद्ध होती है।

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