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डब्ल्यूएचओ की साख पर बट्टा

जब से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ पर यह आरोप लगाया है कि वह चीन के हित में काम कर रहा है तब से डब्लूएचओ को लेकर तमाम आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं ।यूरोप के कुछ लोगों ने डब्ल्यूएचओ के प्रमुख से इस्तीफे की भी मांग की है। संयुक्त राष्ट्र संघ का यह प्रमुख संगठन डब्ल्यूएचओ इसके पहले इतने विवाद  में कभी नहीं आया । दरअसल कोरोना  के कारण अमेरिका में लगातार  मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है । वहां के लोग इसके लिए काफी हद तक अमेरिकी प्रशासन की कमजोरियां मान रहे हैं । लोगों का आरोप है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने इस महामारी को शुरुआत में गंभीरता से नहीं लिया, इसी कारण अमेरिका में लाशों की ढेर लग गई है । ट्रंप भी परेशान है उन्हें कोई उपाय सूझ नहीं रहा जिससे वह अमेरिका में कोरोना से हो रही मौत को रोक सके ।

ट्रंप ने मंगलवार को इस महामारी के लिए डब्ल्यूएचओ को आड़े हाथों लिया । उन्होंने डब्ल्यूएचओ पर चीन का पक्ष लेने का आरोप लगाते हुए अमेरिकी सहयोग बंद करने की धमकी भी दे डाली। अमेरिकी राष्ट्रपति का कहना है कि   डब्ल्यूएचओ ने चीन के पक्ष में इस महामारी की सही जानकारी  दुनिया के सामने नहीं रखी।

चीन में कोरोना की बीमारी पिछले साल मध्य नवंबर में ही फैल चुकी थी , लेकिन चीन ने तब तक इसे दुनिया से छिपाया जब तक यह महामारी का रुप धारण नहीं कर लिया। खबर यह है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 7 जनवरी को पोलित ब्यूरो को इस बीमारी के बारे में जानकारी दे दी थी, लेकिन बाकी दुनिया को  यह जानकारी दो हफ्ते बाद ही मिल सकी। इस बीच चीन और खास कर वुहान लोगों का आना-जाना लगा रहा। चीन बीमारों और मौत के आकड़ों  को छुपाने में लगा रहा।

डब्ल्यूएचओ या तो वास्तविकता से अंजान रहा या चीन के प्रभाव में आकर जानकारियां छिपाता रहा। डब्लूएचओ ने 12 मार्च को यह बताया कि कोरोना एक महामारी है,  जो मनुष्य से मनुष्य में फैलने वाली बीमारी है ।

उसके पहले  डब्लूएचओ ने  कोई  एडवाइजरी जारी नहीं की कि दुनिया के देश अपने अपने यहां सोशल डिस्टेंस रखकर इस बीमारी से बचाव करें , बल्कि डब्ल्यूएचओ ने ट्रंप के उस फैसले की आलोचना ही की जिसमें उन्होंने 31 जनवरी को चीन से आने-जाने वालों पर अपने यहां आने जाने पर रोक लगा दी थी । तब डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा था कि  ट्रैवल बैन इस बीमारी  का इलाज नहीं है । यह माना  यह माना जा रहा है वुहान में जनवरी मध्य आते आते लाशों के अंबार लगने शुरू हो गए थे, लेकिन चीन इसे पूरी दुनिया  से छिपाए रख रहा  था । डब्ल्यूएचओ पर यही आरोप है वुहान में हुई मौतों का इतना  बड़ा आंकड़ा होने के बावजूद डब्ल्यूएचओ ने इसकी जानकारी दुनिया को नहीं दी, बल्कि मानव से मानव फैलने वाले इस महामारी से बचने के लिए भी कोई सलाह जारी नहीं की । डब्ल्यूएचओ का कहना है कि जनवरी के मध्य तक कोरोना की  खतरनाक स्थिति के बारे डब्ल्यूएचओ पर यह  भी आरोप है  कि दुनिया को चीन के प्रति आगाह करने के बजाए डब्ल्यूएचओ ने कोरोना  से  लड़ने के चीन के तरीके की पूरी पूरी सराहना की । जबकि सच्चाई यह है कि चीन ने बेहद गोपनीय तरीके से कोरोना के केस को हैंडल किया। कोरोना के बारे में दूसरे देशों ने वही जाना जो चीन ने बताया। विश्व भर में चीन के राजनयिको ने घूम घूम कर कोरोना से लड़ने के अपने दावे का प्रचार करते रहे। जब यह आशंका व्यक्त की गई कि कहीं चीन ने बायलोजिकल विपन के रूप में तो कोरोना को विकसित नहीं किया है, तो चीन ने उल्टा यह प्रचार शुरू किया  कि यही काम अमेरिका ने किया है। सामान्य तौर पर ट्वीटर पर बैन लगाने  वाले चीनी अधिकारियों ने अमेरिका के खिलाफ अभियान चलाने के लिए ट्वीटर का खूब इस्तेमाल किया। आजिज़ आकर अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पांपियो को चीन से कहना पड़ा कि वे दुष्प्रचार बंद करें।

अमेरिका को लगता है  डब्ल्यूएचओ ने निष्पक्ष होकर अपनी भूमिका नहीं निभाई। इसी कारण अमेरिका ने ङब्लूएचओ की दी जा रही सहायता राशि रोकने  की बात की है ।

अब  डब्ल्यूएचओ प्रमुख  टेङरोस ने अमेरिका को चेताया है यदि फंड रोकने की धमकी औ राजनीतिक बयान बाजी अमेरिकी प्रशासन ने नहीं रोकी तो लाश भरने वाले हजारों बैग की व्यवस्था  उसे और करना पड़ेगा , क्योंकि कोरोना से बचने के लिए इस समय पूरे विश्व को साथ आना पड़ेगा । संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख ने भी डब्ल्यूएचओ के की इस चेतावनी को गंभीरता से लेने के लिए कहां है।

अब देखना है कि यह लड़ाई कहाँ तक जाती है ।

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