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भारत का मुस्लिम मन और जुड़े कुछ सवाल

बात 1990 की है। विश्व हिंदू परिषद द्वारा चलाया जा रहा राम जन्मभूमि आंदोलन चरम पर था। विहिप ने पूरे भारत में शिला  पूजन का आयोजन किया था। जगह जगह उसके कार्यकत्र्ता गाड़ियों में राम मंदिर का चित्र और शिला  के नाम कुछ ईट लेकर चल रहे थे। श्रद्धावान या कह लें कि उस आंदोलन से भावनात्मक रूप से जुड़ गए लोग उन गाड़ियों पर आते कुछ चढ़ावा चढ़ाते सिर नवाते और जय श्रीराम का नारा लगाते थे। एक ऐसे ही कार्यक्रम में मैं भी गया था। मेरे साथ मेरा दोस्त इरफान भी था। कुछ समय वह मेरे साथ खड़ा रहा। लेकिन जैसे ही वहां जय श्रीराम का नारा लगा पता नहीं वह कहां खिसक गया। उस दिन पहली बार महसूस हुआ कि मुस्लिम को चाहे वह भारत का ही क्यों ना हो किसी हिंदू देवी देवता के जयकारे से  परहेज है। मैं नफरत नहीं कह सकता। क्योंकि उसके बाद भी हमारी दोस्ती जारी रही। लेकिन परहेज है। इससे इनकार नहीं कर सकता।

दूसरी तरफ आम हिंदू , उसे किसी मुस्लिम प्रतीक, नमाज या मुस्लिम कार्यक्रम से परहेज नहीं है। शायद ही भारत का कोई शहर होगा जहां किसी पीर का मजार ना हो और उसमें बहुलता से हिंदू न जाते हों। बचपन से ही हमें सिखाया गया कि मुहल्ले की मस्जिद जहां शाम को नमाज अता की जाती है, वहां किसी बीमार बच्चे को ले जाओ और मौलवी उसे फूंक दे तो वह ठीक हो जाता है। आम मुस्लिम को किसी मंदिर में जाकर यही दुआ या आशीर्वाद लेने से परहेज है। उदाहरण कुछ मिल जाते हैं पर मैं आम मुस्लिम की बात करना चाहता हूं।

मैं कोई इस्लाम का जानकार नहीं हूं। मैं व्यवहार की बात कर रहा हूं। क्या किसी मुस्लिम परिवार में यह सिखाया जाता है कि वह इस्लाम मजहब के साथ साथ देश की संस्कृति से भी प्यार करे। क्या आम मुस्लिम परिवार में यह बताया  जाता है कि भले ही हमारे पूर्वजों  ने दोष गुण या प्रताड़ित या लाभ के कारण इस्लाम को अपना लिया हो लेकिन हैं तो हम इसी संस्कृति की उपज। संभवतः नहीं। ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि मैंने समाज व्यवहार में यह नहीं देखा कि देश का मुस्लिम मानस सामूहिक रूप में कभी यह तकसीम किया हो कि हम भी भारत के सनातन संस्कृति से जुड़े हुए लोग हैं। मैंने किसी मुस्लिम  मंच ने कभी यह कहते हुए नहीं सुना कि हमारे पूवर्जों में राम या कृष्ण  रहे हैं। चलो भगवान को छोड़ते हैं कभी कोई राजा कभी कोई हिंदू शासक उनका आदर्श है। नहीं लड़ाई आज भी होती है कि बाबर को किसी ने कुछ गलत क्यों बोला। औरंगजेब अच्छा था बुरा क्यों बता रहे हो। टीपू सुल्तान पर विरोध क्यों कर रहे हो।

हिंदू समाज की खाखियत है कि यदि संघ, विहिप या बजरंग दल से जुड़े कुछ लोग कोई अतार्किक बात या अनर्गल प्रलाप करते हैं तो हिंदू समाज से ही पहला विरोध सामने आता है। चाहे वह राजनीतिक कारणों से हो या फिर भारतीयों के मन में बसे भारत की सेकुलर सोंच के कारण लेकिन विरोध का स्वर उठता जरूर है। क्या यही बात मुस्लिम समाज के बारे में कही जा सकती है। क्या किसी ने देखा या सुना है कि किसी मुस्लिम नेता या मौलाना ने देश या संस्कृति के बारे में कुछ आपत्तिजनक कहा हो और मुस्लिम समाज या मुस्लिम राजनीति करने वाले कभी सामूहिक रूप से उसके विरोध में खड़े हुए हों। क्या किसी मुस्लिम संगठन ने कभी सार्वजनिक रूप से हिंदुत्व या भारत को गाली देने वाले किसी बाहरी मुल्क खास कर पाकिस्तान के नेताओं के खिलाफ कोई देशव्यापी मोर्चा निकाला है। जवाब हम दिमाग पर जोर डालकर भी हां में प्राप्त नहीं कर सकते।

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सीएए पर देशभर में चल रहे आंदोलन के औचित्य पर सवाल नहीं है। किसी को भी अपने घर के छिने जाने  की आशंका हो तो उसका बिलबिलाना स्वाभाविक है। पर यह आशंका सही भी होना चाहिए। किसी की नागरिकता जाने का खतरा भी होना चाहिए। सीएए के विरोध के लिए खुद को शहीद करने का नारा देने वालों से किसी ने एक सवाल पूछा है कि क्या 1947 से आज तक किसी भी भारतीय चाहे मुस्लिम ही क्यों नहीं हो, नागरिकता गई है। क्या किसी एक को भी देश से बाहर निकला गया है। भाजपा या संघ के लोग आज सरकार में पहली बार नहीं आए हैं। पहले भी सरकार के हिस्सा रहे हैं। कई राज्यों में वर्षों से सरकारें चल रही हैं। लगभग छह साल वाजपेयी के नेतृत्व में और छह साल से ही मोदी के नेतृत्व में सरकार चल रही है। क्या किसी एक भी मुस्लिम परिवार को देश निकाला किया गया है। जवाब सबके पास ना होगा। फिर भी आशंका, फिर भी विरोध।

क्या किसी पढ़े लिखे मुस्लिम को मालूम नहीं है कि पड़ोस में पाकिस्तान भारत के टूटने का सपना देख रहा है। क्या किसी मुस्लिम संगठन को या राजनीतिक पार्टी को यह मालूम नहीं है कि आपके सीएए के विरोध को वह मुस्लिमों के खिलाफ जुल्म के रूप में दुनिया में प्रस्तुत करते की कोशिश कर रहा है। मुस्लिम विरोध की अगुवाई और व्यूह रचना बनावे वाले मुस्लिम युवा नेता क्या यह नहीं जानते कि 5 फरवरी को पूरे पाकिस्तान में कश्मीर की आजदी के लिए प्रदर्शन और जलसे का आयोजन किया गया। क्या किसी एक भी मुस्लिम संगठन ने भारत की एकता के लिए किसी दिन कोई दिवस का आयोजन किया है।

क्या किसी मुस्लिम यूनिवर्सिटी से यह आवाज आई है कि कश्मीर हमारा भारत का है। क्या कोई नारा या तख्ती मुस्लिम मंच से दिखाई दिया है जिसमें कहा गया हो भारत की एकता और अखंडता पर टेढ़ी आख करने वालों की आंखे फोड़ दी जाएंगी। मुस्लिम युवक एक बार खुद से यह पूछे। राम और रहमान दोनों इस देश के नागरिक हैं। दोनों ही इस देश के नागरिक रहेंगे। विभाजन का स्क्रिप्ट  लिखने वाले राम रहीम दोनों के दुश्मन हैं। यह बात मुस्लिम समाज से नहीं आएगी तो संविधान की दुहाई और भारत के तिरंगे के साथ यह सीएए पर विरोध प्रदर्शन चीनी की चाशनी में जहर लपेट कर पेश करने का मानस नजर आएगा। इस देश के मुसलमानों को यह सोंचना चाहिए। खास कर युवाओं को।

Bikram for IIW

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