PERSONALITY

शरजील इमाम : कैंपस से क्रांति और अब जेल

जहानाबाद जिले के शरजील इमाम पटना के मिशनरी स्कूल में पढ़े हैं । उन्होंने 12 वीं की परीक्षा 2006 में कंप्यूटर साइंस के साथ पास की आगे कंप्यूटर विज्ञान में बीटेक के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे में एक स्थान प्राप्त किया। आईआईटी से ग्रेजुएशन के बाद शरजील इमाम बेंगलुरु में एक सॉफ्टवेयर कंपनी से जुड़ गए और वहां 2 साल नौकरी की। उन्हें कई बार यूरोप जाने का अवसर मिला। अपने पिता अकबर इमाम की तरह शरजील ने भी सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम किया। इमाम ने 2013 में समतावादी वातावरण की आशा में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की ओर रुख किया। शरजील इमाम तुरंत कैंपस में वामपंथी ताकतों से प्रभावित हो गये। वह ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (AISA) – CPI (ML) के छात्र विंग में शामिल हुए। 2015 में, उन्होंने JNU छात्र संघ के चुनाव में पार्षद पद के लिए AISA के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा।
जब एबीवीपी के छात्रों के एक समूह के साथ हाथापाई के बाद अक्टूबर 2016 में जेएनयू छात्र नजीब अहमद रहस्यमय तरीके से परिसर से गायब होने के बाद लेफ्ट द्वारा इस मुद्दे को हल्के में लेने का आरोप लगते हुए
उन्होंने 2016 के अंत में आइसा छोड़ दिया। और एसएफआई (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया) के खिलाफ बोलना शुरू कर दिया। आईआईटी, एमए, एम.फिल और पीएचडी के उनकी बड़ी उपलब्धियां हैं ।
शरजील इमाम अपने कथित रूप से देशद्रोही भाषण को लेकर विवादों में है। लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि
सरकार को मुसलमानों की परवाह नहीं है, इसलिए ‘चक्का जाम’ (सड़क ब्लॉक) का उनका आह्वान केवल सरकार को हमारी बात सुनने का प्रयास था। ‘’ असम और भारत कटके अलग हो जायें, तब हि तुम हमरी बात सुनोगे ”उन्हें वीडियो में कहते हुए सुना जा सकता है।
शरजील के बोल

‘’शाहीन बाग का मॉडल चक्का जाम का है, बाक़ी सब सेकेंडरी हैं, चक्का जाम और धरने में फ़र्क समझिए, हर शहर में धरने कीजिए, उसमे लोगों को चक्का जाम के बारे में बताइए, और फिर तैयारी करके हाईवे्ज़ पर बैठ जाइए.’’
‘’shaheen bagh me 25 December ke pehle, jab international ya national media me khabar nahi chhapi thii, tab us highway ko block karne waali awaam ka hausla badhaane kaun kaun aata tha?
15 se 25 tak bolne waalo me JNU, IIT, Jamia aur AMU ke chand Muslim scholars the aur kuchh unke non-Muslim dost. Non-Muslim groups me Ambedkarites sabse pehle aaye, aur be-jhijhak aaye. BAPSA, BAMSEF aur Bhim Army ke log doosre teesre roz (16, 17 Dec) se hi aate rhe. aur bhi kuchh groups ki mada.’’
“in the last seven decades, this constitution has, in many ways, aided the process of reducing minorities, especially the 200 million Muslims, to the status of second-class citizens. The dismal figures among Muslims in relation to poverty, education, employment and political representation clearly demonstrate the lack of foresight regarding the minority issue during the constitution-making process.”

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