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पाकिस्तानी मीडिया भी मानता हैः हाफिज पर कारवाई टू लिटिल टू लेट

बाकी देशों की तरह पाकिस्तान का भी मीडिया मानता है कि लाहौर कोर्ट द्वारा जमातूद दावा सुप्रीमो हाफिज सईद को सजा देने का फैसला काफी देर और काफी हल्के मन से उठाया गया कदम है। जो संभवतः इस डर से उठाया गया है कि कहीं फाइनेंशियल एक्सन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) पाकिस्तान को ब्लैक लिस्ट में ना डाल दे।

 

फ्रांस स्थित एफएटीएफ आतंकवादियों को दी जा रही आर्थिक मदद पर नजर रखता है और इस संस्था ने पाकिस्तान से आतंकवादियों को मिल रही मदद के लिए इस देश को ग्रे लिस्ट में डाल रखा है। जिसका अर्थ है कि पाकिस्तान को बाकी दुनिया के देश वैसे आर्थिक मदद नहीं कर सकते जैसे कि सामान्य देशों को करते हैं।

पाकिस्तान का प्रमुख मीडिया डॉन अपने संपादकीय में लिखता है कि – हाफिज सईद, निश्चित रूप से, लश्कर-ए-तैयबा के पीछे की शक्ति था जो 1980 के दशक के उत्तरार्ध में अमेरिका समर्थित अफगान जिहाद के रूप में सामने आया और बाद में  कश्मीर केंद्रित लश्कर दक्षिण एशिया में सबसे हिंसक और संगठित आतंकवादी समूहों में से एक बन गया।’

हाफिज सईद के वकील मोहम्मद इमरान को उद्धृत करते हुए डॉन  लिखता है- एफएटीएफ के दबाव के कारण उसके क्लायंट को दोषी ठहराया गया है। वह शीघ्र ही लाहौर हाईकोर्ट इस निर्णय के खिलाफ अपील करेंगे।

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आगे डॉन  लिखता है- हाफिज सईद जैसे उग्रवादी नेताओं को विदेश नीति के उपकरण के रूप में प्रयोग करना पाकिस्तन की एक विफल रणनीति है। अब यह इस्लामाबाद के शीर्ष नेतृत्व को समझ आ रहा है। एक समय कुछ नेताओं या पाकिस्तान एस्टाबलिसमेंट ने दूसरे देश या अपने यहां के विरोधियों के खिलाफ धार्मिक आतंकवादियों का उपयोग किया था।

डॉन  का साफ मानना है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा हाफिज सईद को आतंकवादी के रूप में सूचीबद्ध करने के बाद भी परदे के पीछे से उसका उपयोग पाकिस्तान के लिए समस्याओं के अलावा कुछ भी नहीं लाया है। लश्कर और जमात के लड़ाकों ने भी पाकिस्तान के भीतर अस्थिरता फैलाने में योगदान दिया है।

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डॉन  ने हाफिज सईद पर मुकदमे चलाने की गंभीरता पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि पाकिस्तान में, आतंकवादी समूहों पर मुकदमा तो चलाया जाता है, लेकिन उनके नेता और कैडर के लोग नियमित रूप से काम करते हैं। यदि वाकई  हाफिज सईद की सजा बरकरार रहती है तो इस स्थिति को बदलने में मदद मिलेगी

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की कोर्ट की ओर से मुंबई धमाकों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को दो मामले में साढ़े पांच पांच साल की सजा सुनाई है।

मीडिया में भले ही आ रहा हो कि हाफिज को 11 साल की सजा हुई है लेकिन सच तो यह है कि दोनों सजा एक साथ चलेंगी और हाफिज को सिर्फ साढ़े पांच साल की सजा हुई है। पाकिस्तान इसे आतंकवाद के खिलाफ अपनी अंतरराष्ट्रीय बाध्यता के रूप में प्रचार कर रहा है। लेकिन सच तो यह है फ्रांस की राजधानी पेरिस में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक हो रही है जिसमें यह तय किया जाना है कि पाकिस्तान को टेरर फाइनेंस के लिए दोषी मानते हुए  काली सूची में डाला जाए, ग्रे सूची में ही रहने दिया जाए या फिर उस पर से सारे प्रतिबंध हटा लिए जाए। संयुक्तराष्ट्र से आतंकवादी घोषित सईद को पिछले साल 17 जुलाई को टेरर फाइनेंस के कुछ मामले में गिरफ्तार किया गया था। उस पर लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों को भारत और दुनिया के अन्य देशों के खिलाफ आतंकवादी कार्रवाई के लिए धन मुहैया कराने का आरोप है और 2008 में मुंबई धमाके लिए भी उस पर मास्टरमाइंड होने का आरोप है। जिसमें अमरीका के भी 8 नागरिक मारे गए थे।

जिस आर्थिक हालात से पाकिस्तान गुजर रहा है, उससे पाकिस्तान में जबर्दस्त परेशानी की आशंका है। उसे ईरान की तरह ही गंभीर आर्थिक प्रतिबंध झेलना पड़ सकता है। अमेरिका पहले ही कह चुका है कि यदि एफएटीएफ के दायित्वों को पाकिस्तान पूरा नहीं करता तो तो आर्थिक रूप से उसके लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने अफगानिस्तान में अमरीका के सहयोग के बदले में ग्रे लिस्टसे बाहर करने में अमरीकी मदद की गुहार लगाई है।

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