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अमेरिका के खिलाफ लड़ाई में मजहब को हथियार बनाने में जुटा चीन

युद्ध की आशंका से ग्रसित चीन अब अमेरिका के खिलाफ लड़ाई में मजहब को हथियार बनाने में जुटा है ।  चीन के सरकारी अखबार :” ग्लोबल टाइम्स ” ने लिखा है – अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कोरोनावायरस के लिए चीन को सीधे जिम्मेदार ठहराया है उसके पीछे दर असल अतिवादी क्रिश्चियन सोंच  ,कारण है । चीन ने 5 मई को  कहा था कि माइक  पॉम्पियो  को झूठ नहीं बोलना चाहिए , क्योंकि वह सच्चे क्रिश्चियन हैं और मैं विदेश मंत्री बनने से पहले कई बार क्रिश्चियनिटी के पक्ष में भाषण भी दे चुके हैं । चीन ने कहा कि इसाईयों को झूठ नहीं बोलना चाहिए,  क्योंकि बाइबिल ने इसे पाप माना है ।

6 जुलाई को प्रकाशित ” ग्लोबल टाइम्स ”  लिखता है कि  अमेरिकी क्रिश्चियनिटी से पूरी तरह बंधे हुए हैं और वे चीन के प्रति घृणा का भाव रखते हैं । इसीलिए वे कोरोना को वुहान लेबोरेटरी से निकाले जाने का झूठा आरोप लगा रहे हैं । वे चीन को कोरोना वायरस का जनक बता रहे हैं  और वहीं से वायरस निकलने का दावा कर रहे हैं । चीन इसे अपने खिलाफ अमेरिका का मजहबी उन्माद बता रहा है

चीन ने अपनी दलील के पीछे जो तर्क दिया है वह बड़ा दिलचस्प है । चीन कहता है कि अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो इवानजैलिकल क्रिश्चियन हैं, जो अमेरिकी राजनीति से काफी करीबी रिश्ता रखते हैं ।   इवानजैलिकल यह मानते हैं कि अमेरिका को  गॉड ने बनाया है और राष्ट्रपति ट्रंप गॉड के भेजे एक दूत हैं जिसे गॉड ने अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के लिए चुना है । चीन ने अपनी इस दलील के पक्ष में 18 वीं सदी के प्रमुख  इवानजैलिकल जॉनाथन एडवर्ड्स को उद्धृत करते हुए कहा है कि उसने ही कहा था “धरती के लिए गर्व अमेरिका से ही शुरू होगा ” चीन ने तो यहां तक कहा है कि जब से ट्रंप राष्ट्रपति बने हैं ,चीन के प्रति  अमेरिकी व्यवहार को अमेरिकी मजहबी  लोगों ने बंधक बना लिया है।

चीन का अखबार आगे लिखता है कि अमेरिकी समझते थे की पूरी दुनिया में उनकी सभ्यता ही सबसे उन्नत सभ्यता है और जब चीन ने अपनी आर्थिक प्रगति से उनके सामने चुनौती पेश की तो वे चीन के एकदम खिलाफ हो गए ।

दरअसल चीन ने अमेरिका के खिलाफ मजहब का कार्ड यूं ही नहीं खेला है । चीन को मालूम है इस समय जो देश चीन को वुहान लेबोरेटरी के जरिए कोरोना वायरस फैलाने के लिए दोषी मान रहे हैं वे अधिकतर क्रिश्चियन कंट्री हैं। चाहे वह अमेरिका हो ब्रिटेन हो जर्मनी हो इटली हो या फिर कनाडा हो यह सभी देश प्रमुख रूप से  क्रिश्चियन को ही मानते हैं ,जबकि चीन में बौद्ध  इस्लाम और  ताओइज्म है ।

चीन  अमेरिका पर क्रिश्चियनिटी के कारण  आरोप लगाने का जो दाव खेलना चाहता है , उसके पीछे दरअसल उसका मकसद  विश्व को दो भागों में विभाजित करना है ।

यह सबको मालूम है कि क्रिश्चियनिटी बनाम इस्लाम का युद्ध वर्षों से चल रहा है । इस्लाम  के नाम पर खड़ी सबसे बड़ी आतंकवादी संस्था आईएसआईएस के खिलाफ क्रिश्चियन वर्ल्ड जी जान से लगा हुआ है । चीन पाकिस्तान , ईरान और अन्य मुस्लिम देशों को शह और सहायता देता रहा है । इसके अलावा चीन यह भी जानता है कि जापान ,कोरिया जैसे देश जहां बौद्ध धर्म प्रमुखता से पालन किया जाता है  वह भी मजहब के नाम पर उनके साथ खड़े हो सकते हैं । चीन क्रिश्चियन वर्ल्ड में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रहा है । वह कनाडा को बार-बार उकसा रहा है कि कोरोना वायरस के मामले में अमेरिकी रुख का समर्थन वह ना करे।  चीन ने कनाडा को कई बार समझाने की कोशिश भी की है  कि डब्ल्यूएचओ का फंड रोकने का अमेरिकी प्रशासन का फैसला ना माने और उसकी आलोचना करे।

चीन का इरादा बेहद खतरनाक है ।वह अपनी आर्थिक संप्रभुता को बचाने के लिए दुनिया में  मजहबी विभाजन करने की फिराक में है और दुनिया को दो भागों में बांट कर इस युद्ध का नेतृत्व करना चाहता है।  जबकि विश्व को मालूम है कि वुहान  से निकले कोरोनावायरस ने किसी मजहब को ध्यान में रखकर संक्रमित नहीं किया है,  बल्कि दुनिया के हर मजहब के लोग इसके शिकार हुए हैं मौत की नींद सो गए हैं । लेकिन चीन एक तरफ साउथ अरेबियन  सी में युद्ध की तैयारी कर रहा है वहीं दूसरी तरफ दुनिया को क्रिश्चियनिटी के खिलाफ खड़ा करने में भी लगा हुआ है  ।

BIKRAM UPADHYAY
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