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अपने ही लोगों के खिलाफ जिहाद कर रहे हैं इमरान

पाकिस्तान में अजीब स्थिति बनी हुई है । वहां के डॉक्टर, साइंटिस्ट, संभ्रांत लोग और यहां तक कि पत्रकार भी यह मान रहे हैं कि जब पूरी इस्लामिक दुनिया में मस्जिदे बंद हैं तो प्रधानमंत्री इमरान खान का मस्जिद खोलने का एलान एक सुसाइड की तरह है । उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री इमरान खान उलेमाओं के साथ मिलकर  मस्जिदे खोलने का फैसला कर लिया है ।

इमरान खान की दलील है कि पाकिस्तान आजाध मुल्क है और आजाद मुल्क  में किसी पर भी मस्जिद जाने की पाबंदी  मुनासिब नहीं है । इसलिए वह किसी भी नमाजी को मस्जिद में जाना नहीं रोक सकते ।

इमरान खान की दलील को पाकिस्तान में एक मजाक के रूप में लिया जा रहा है । बड़े-बड़े नगमा कार यह सवाल उठा रहे हैं कि क्या पाकिस्तान तमाम बड़े देशों से अलग है ?  जब काबा की मस्जिदें बंद हैं  , ईरान इराक से लेकर सऊदी अरब मिस्र ,तुर्की तक की मस्जिदें  कोरोना के कारण बंद कर दी गई हैं,  तो क्या इमरान खान इनमें मुमालिकों से भी ज्यादा इस्लाम परस्त हैं?  उनका यह तर्क कि आजाद मुल्क  मुसलमानों को मस्जिद में जाने से नहीं रोक सकते , किसी को भी समझ में नहीं आ रहा है । हालांकि दुनिया को बताने के लिए इमरान खान कहते हैं हमने उलेमाओं से करार किया है कि 50 साल से ऊपर के लोग नमाज अदा करने मस्जिदों में नहीं जाएंगे,  ना ही बच्चे मस्जिद में जाएंगे । 6 फीट की दूरी नमाजी आपस में कम से कम बरकरार रखेंगे , मस्जिदों से कालीनें हटा ली जाएंगी  और मस्जिदों में  लगातार धुलाई की जाएगी । लेकिन मंगलवार को इमरान खान की एसओपी फेल साबित हुई। मस्जिदों में  50 वर्ष की उम्र से  ज्यादा लोगों की तादाद 90 फीसदी से अधिक थी।

प्रधानमंत्री इमरान खान के सामने वहां के डॉक्टर गिर गिरा रहे हैं । पाकिस्तान के डॉक्टरों ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर अनुरोध  किया है कि मस्जिदे खुदा के लिए बंद कर दें नहीं तो पाकिस्तान में कोरोना से हलाक लोगों की गिनती करनी मुश्किल हो जाएगी। लेकिन इमरान खान टस से मस नहीं हो रहे ।

दरअसल पूरी तरह से घिरे इमरान खान को मालूम है सत्ता में उलेमा मौलवियों कट्टरपंथियों के भरोसे ही बने रह सकते हैं । पाकिस्तान की अंदरूनी हालत काफी खस्ता है। वहां के कैबिनेट में ही इमराना खान को लेकर तमाम सुगबुगाहट है । जहांगीर तरीन जैसे नेता ,जो कभी इमरान खान को पैसे और तमाम सहूलियत प्रदान कर रहे थे ,अब उनकी सरकार गिराने में लगे हैं । इसलिए इमरान खान ने राजनीतिक सूझबूझ के बजाय उन रास्तों पर चलना शुरू कर दिया है , जो फौज को ठीक लगे, वहां के आतंकवादी नेताओं को ठीक लगे और सबसे बड़ी बात कि लोगों का ध्यान सरकार की विफलताओं पर ना जाये । इमरान ने ना सिर्फ उलेमाओं,  मौलानाओं को खुश किया है   बल्कि तमाम उन त॔जीमों को भी दुनिया की नजरों से बचाकर महफूज रखने की कोशिश की है, जो आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल थे। वॉल स्ट्रीट जनरल के अनुसार पिछले 1 साल में इमरान की सरकार ने आतंकवादियों की निगरानी सूची में शामिल 4000 से अधिक लोगों को निगरानी सूची से बाहर कर दिया है । ऐसा कर इमरान खान ने तमाम आतंकवादी संगठनों को सहूलियतें प्रदान कर दी है। वे अब अपनी आतंकवादी गतिविधियों के लिए जकात हासिल कर सकते हैं, गलत तरीके से पैसे ला सकते हैं। आतंकवादी कार्रवाइयों में उसका इस्तेमाल कर सकते हैं ।

कोरोनाे  कारण एफएटीएफ ने फिलहाल पाकिस्तान को अक्टूबर तक का समय दिया है, उसके बाद ही है एफएटीएफ इसकी समीक्षा करेगाा कि पाकिस्तान  को काली सूची में डाला जाए , ग्रे सूची  में रखा जाए या उसे ग्रे  से भी बाहर निकाल दिया जाए ।इमरान ने अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो यानी नैब को पूरी तरह सक्रिय कर दिया है। पाकिस्तान के विपक्षी नेता शहबाज शरीफ पर तलवार लटकी हुई है । नैब 15 -15दिनों  की मोहलत दे रहा है।यह कहा जा रहा है कि शाहबाज शरीफ कभी भी गिरफ्तार हो सकते हैं। यही नहीं आटे और चीनी का घोटाला भी अब नैब ही देखेगा।  यानी इमरान खान अपने सभी विरोधियों को चेतावनी दे रहे हैं।  इमरान खान अपने बचाव के लिए जिहादियों को उतार रहे हैं । आम पाकिस्तानियों की जिंदगी खतरे में पड़ गई है। पाकिस्तानी मीडिया और वहां के इंटेलेक्चुअल चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं  कि कोरोना से बचाने की जिम्मेदारी हुकूमत की है ,क्योंकि लोगों ने वोट उन्हें दिया है । उलेमा और मौलवियों को नहीं ,जिनके हवाले इमरान ने पाकिस्तान को कर दिया है।

BIKRAM UPADHYAY

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