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ट्रंप और मोदी के बीच दोस्ती इस क्षेत्र के लिए बहुत बड़ा वरदान

ट्रंप के भारत दौरे की सफलता पर जिस तरह आंशका के

कोहरे बिछाए गए उससे सफलता की ध्वनि कमजोर हुई

अमरीकी राष्ट्रपति का भारत आना केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख से नहीं जुड़ा था, बल्कि भारत के आन बान शान से भी जुड़ा था। यह बात देश को दुश्मनों को भी मालूम थी और यहां घरेलू स्तर पर विपक्षी नेताओं को भी। भारत और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ खड़ी ताकतों ने भरपूर कोशिश की कि राष्ट्रपति ट्रंप के दौरे से भारत को मिलने वाली ख्याति या लाभ को रोका जाए या उसे दूसरे प्रोपोगांडा के जरिए मलिन कर दिया जाए। कुछ हद तक यह प्रयास सफल भी हुआ। जिस राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय मीडिया को राष्ट्रपति ट्रंप और मोदी की मुलाकात का विश्लेषण करना था वह मीडिया दिल्ली, सीएए, मुस्लिम विरोधी दंगे और मोदी सरकार की ‘नाकामी’ का विश्लेषण कर रहा है। पर प्रधानमंत्री मोदी ने जिन विपरीत परिस्थितियों में अमरीकी राष्ट्रपति से अपनी दोस्ती और गाढ़ी करने और भारत के पक्ष में इस दौरे को मोडने जो सफलता प्राप्त की वह सुनहरे अक्षरों में अंकित किया जाएगा।

राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी के बीच दोस्ती इस क्षेत्र के लिए बहुत बड़ा वरदान साबित हो सकता है। खासकर पूर्वी एशिया में। जहां एक तरफ आतंकवाद के खिलाफ जारी मोर्चा और मजबूत हो सकता था, वहीं चीन से मिल रही आर्थिक और सामरिक चुनौतियों से लड़ने के लिए भी मजबूत आधार और सहयोग मिल सकता था। लेकिन ट्रंप के भारत दौरे की सफलता पर जिस तरह आंशका के कोहरे बिछाए गए उससे सफलता की ध्वनि कमजोर तो हुई ही।

राष्ट्रपति ट्रंप के दौरे से सबसे बड़ा डर पाकिस्तान को था। इसलिए प्रधानमंत्री इमरान खान खुद पाकिस्तान की प्रोपोगेंडा मशीन अपने हाथों में लेकर इस दौरे को कमजोर करने में जुटे थे। सबसे पहले पाकिस्तान से यह झूठ फैलाने की कोशिश की कि एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल टास्क फोर्स की फरवरी में  होने वाली बैठक में ट्रंप प्रशासन ने इस्लामाबाद को ग्रे सूची से निकालने का भरोसा दिया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मेहमूद कुरैशी ने खुद आगे बढ़कर यह दावा किया कि अफगानिस्तान में शांति प्रकिया के लिए जो सहयोग पाकिस्तान दे रहा है उसके बदले अमरीका उसे एफएटीएफ की सूची से बाहर निकालने में मदद करेगा। लेकिन हुआ उसके उल्टा।

पाकिस्तान को न सिर्फ ग्रे सूची में बरकरार रखा गया, बल्कि उसे यह चेतावनी भी दी गई कि यदि चार महीने में आतंकवादी फंडिंग को नहीं रोका गया तो पाकिस्तान को काली सूची में डाल दिया जाएगा। एफएटीएफ पर मुंह की खाने के बाद भी पाकिस्तान राष्ट्रपति ट्रंप के भारत के दौरे को अपने पक्ष में भुनाने का प्रयास करता रहा। ट्रंप का यह कहना कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से उनके अच्छे संबंध हैं, इसी से इस्लामाबाद को संजीवनी मिल गई। राष्ट्रपति ट्रंप के दौरे के बीच में ही इमरान खान ने विश्व समुदाय से यह अपील कर दी कि दिल्ली में मुसलमानों के खिलाफ हो रहे कथित अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाए।

यद्यपि राष्ट्रपति ट्रंप ने इस्लामिक आतंकवाद का नाम लिया, लेकिन उससे पाकिस्तान को सीधे जोड़ने से बचते रहे। इसका सबसे बड़ा कारण पाकिस्तान नहीं, बल्कि हमारे विपक्ष का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार हैं, जिसने लगातार यह प्रचारित किया कि सीएए या एनआरसी मुसलमानों को डराने या उनकी नागरिकता पर संदेह जताने के लिए लाया गया है। पाकिस्तान इन्हीं चीजों को लगातार भुनाता रहा और अतंतः अपने उपर ट्रंप की किसी टिप्पणी को टालने में सफल रहा। यह प्रधानमंत्री मोदी की सफल कूटनीति है, जिसने राष्ट्रपति ट्रंप को यह सफलता पूर्वक समझाया कि ये दो कानून किसी धार्मिक समूह के खिलाफ नहीं, बल्कि देश में घुसपैठियों को चिन्हित करने और पड़ोसी देशों में धर्म के आधार पर प्रताड़ित हिंदुओं को नागरिकता देने से है। यह हमारी बड़ी कूटनीतिक जीत है कि स्वयं ट्रंप ने विश्व बिरादरी को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत में धार्मिक आजादी दुनिया के किसी भी देश से अधिक है और सीएए या एनआरसी भारत का आंतरिक मामला है।

प्रधानमंत्री मोदी के उद्गार

  • यह संबंध, 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण पार्टनरशिप्स में है और इसलिए आज राष्ट्रपति ट्रंप और मैंने हमारे सम्बंधों को कॉम्प्रिहेन्सिव ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप के स्तर पर ले जाने का निर्णय लिया है।
  • आतंक के समर्थकों को जिम्मेदार ठहराने के लिए आज हमने अपने प्रयासों को और बढ़ाने का निश्चय किया है।
  • हमारे बीच ड्रग तस्करी, नार्को-आतंकवाद और संगठितत अपराध जैसी गंभीर समस्याओं के बारे में एक नए मेकैनिज्म पर भी सहमति हुई है।
  • हमारी स्ट्रैटेजिक एनर्जी पार्टनरशिप सुदृढ़ होती जा रही है। और इस क्षेत्र में आपसी निवेश बढ़ा है।
  • तेल और गैस के लिए अमेरिका भारत का एक बहुत महत्वपूर्ण स्त्रोत बन गया है। हम एक बड़ी ट्रेड डील के लिए बात करेंगे।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उद्गगार

  • भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हमारे मजबूत रिश्ते हैं, मोदी एक शानदार नेता हैं।
  • भारत में मेरा जैसा स्वागत किया गया, वैसा किसी का नहीं किया गया होगा। हमारे राजदूत ने भी कहा -ऐसा स्वागत कभी नहीं देखा।
  • मैं आपके देश की सराहना करता हूं, पीएम की सराहना करता हूं, ये कूटनीति की दोस्ती है।
  • आतंकवाद के मुद्दे पर हमने विस्तार से बात की। पीएम मोदी धार्मिक शख्स हैं, शांत हैं, लेकिन मजबूत व्यक्तित्व वाले हैं, आतंकवाद के खिलाफ वह लड़ रहे हैं।
  • हमने धार्मिक स्वतंत्रता पर बात की। धार्मिक आजादी पर भारत सही काम कर रहा है। भारत में सभी धर्मों का सम्मान।
  • कश्मीर भारत-पाकिस्तान के बीच बड़ी समस्या है, लेकिन दोनों इस समस्या को सुलझा सकते हैं।भारत ने राष्ट्रपति ट्रंप के दौरे से जो हासिल किया
    • अमेरिका भारत को भारत को 24 एमएच व 60 आर हेलिकॉप्टर देगा
    • इंडियन आर्मी के लिए 6एच व 64 ई अपाचे हेलिकॉप्टर की खरीदारी भारत करेगा
    • इंडियन नेवी के लिए मल्टी मिशन एयरक्रॉफ्ट भी भारत अमरीका से हासिल करेगा।

     

जब राष्ट्रपति ट्रंप भारत की यात्रा की तैयारी कर रहे थे तभी अमरीका के चार प्रमुख सिनेटर्स, क्रिस वान हालेन, टोड यंग, रिचर्ड जे डर्बिन और लिंडसे ओ ग्राह्म ने अमरीका के विदेश मंत्री माइक पंपियों को पत्र लिखकर यह अनुरोध किया कि जब राष्ट्रपति ट्रंप भारत जाएं तो वह कश्मीर में मानवाधिकार का मुद्दा जरूर उठाएं। इन सिनेटरों ने अपने पत्र में लिखा कि 5 अगस्त 2019 को जब भारत ने कश्मीर से धारा 370 हटा दिया, तक से अब तक वहां के लोगों पर तमाम पाबंदियां लगी हुई हैं। पाकिस्तान लगातार अमरीका में इस मुद्दे पर लाबिंग कर रहा है। यह प्रधानमंत्री मोदी का ट्रंप पर प्रभाव का परिणाम है या फिर राष्ट्रपति ट्रंप का प्रधानमंत्री मोदी के प्रति विश्वास कि दौरे पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि धारा 370 हटाने का मोदी सरकार का निर्णय उनका आंतरिक मामला है और प्रधानमंत्री कश्मीर पर काम कर रहे हैं। यद्यपि उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर पर आवश्यक हुआ तो उन्हें मध्यस्थता करने में खुशी होगी, लेकिन साथ ही यह भी जोर देकर कहा कि भारत और पाकिस्तान मिल कर इसे सुलझा सकते हैं। इससे ज्यादा भारत के लिए क्या उपलब्धि हो सकती है कि यूरोप और अमरीका पाकिस्तान के इस प्रोपोगेंडा को गिरा दें कि कश्मीर में मानवाधिकार हनन हो रहा है और उस पर अंतराष्ट्रीय शक्तियां हस्तक्षेप करें।

एक वह भी समय था जब तत्कालिन प्रधानमंत्री नरंिसह राव के एक बार कहने पर तब के विपक्ष के नेता स्व अटल बिहारी वाजपेयी जेनेवा में होने वाली संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोग की बैठक में भारत के अधिकारिक दल का नेतृत्व करने सहज चले गए और वहां उन्होंने कश्मीर के कथित मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर पाकिस्तान द्वारा भारत पर प्रतिबध लगाए जाने के प्रस्ताव को गिराने में प्रमुख भूमिका निभाई। लेकिन जब बात प्रधानमंत्री मोदी के इस नाजुक घड़ी में सहयोग की बात आई, तो कांग्रेस ने राष्ट्रीय हितों के खिलाफ जाकर काम किया। पहले तो लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चैधरी ने राष्ट्रपति ट्रंप के लिए उलूल जुलूल बातें की, फिर कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने ट्रंप के स्वागत पर होने वाले खर्चें पर आपत्ति दर्ज की, और सबसे बड़ी बात कि सामान्य कूटनीतिक जरूरतों को पूरा करने में भी कांग्रेस ने सामान्य शिष्टाचार का भी पालन नहीं किया। सोनिया गांधी को निमंत्रण ना मिलने का मुद्दा बनाकर कांग्रेस ने राष्ट्रपति ट्रंप के सम्मान में दिए भोज का बायकाट कर दिया। यहां तक कि पूर्वप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अंतिम समय में भोज में शामिल होने से मना कर दिया। कांग्रेस का यह व्यवहार देशहित के सरासर खिलाफ था। बावजूद इसके अपने आतिथ्य सत्कार से राष्ट्रपति ट्रंप गदगद नजर आए। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के प्रति उद्गार की सभी उपमाओं का उपयोग किया।

और अंत में षडयंत्र पूर्वक कुछ लोगों ने नागरिक कत्र्तव्यों के पालन के बजाय राष्ट्रपति ट्रंप के दौरे को एक बुरे अनुभव में बदलने के लिए जो कृत्य किया, वह एक देश के रूप शर्मसार करने के लिए काफी है। दिल्ली में दंगे के लिए कुछ बयानों और सोशल मीडिया पर चल रहे संदेशों को ही सिर्फ  जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, वे षडयंत्रकारी भी जिम्मेदार हैं जो यह बयान देते नजर आए कि दिल्ली में दंगा सरकार नियोजित है, गृहमंत्री अमित शाह जिम्मेदार हैं, दिल्ली जल रही है और मोदी अमरीकी राष्ट्रपति के साथ फोटो खिचवाने में लगे हैं। इन सभी लोगों को एक भारत श्रेष्ठ भारत के नारे से गुरेज है, वे टुकड़े टुकड़े भारत के हामी हैं। जिन्होंनें आजादी शब्द को सरकार के खिलाफ  मुहाबरे के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है, जिन्हें देशहित से ज्यादा मोदी विरोध प्यारा है।

राष्ट्रपति ट्रंप का दौरा कूटनीति की किताबों में एक बेहद सफल दौरे के रूप में लिखा जाएगा, लेकिन साथ में यह भी उद्धृत होगा कि इस कुटनीतिक सफलता का रस्सास्वादन लेने के बजाय हमें कड़वे अनुभव के घूट परोसे गए।

 

 

 

 

 

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